हम कई बार मीडिया में लाभ के पद के बारे में सुनते रहते हैं। भारतीय संविधान में लाभ के पद को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है. हालांकि उसके बारे में संविधान में उल्लेख जरूर किया गया है दरअसल जब कोई भी संविधानिक पद पर बैठा व्यक्ति किसी दूसरे सरकारी पद भी आसीन हो जाता है और उसके द्वारा वहां से भी वेतन और भत्ता लिया जाता है। या फिर उसके निर्णय से कोई व्यक्ति प्रभावित होता है तो ये सब लाभ के पद के दायरे में आता है। हालांकि लाभ के पद में आने पर कुछ अनुच्छेद के अनुसार संसद या विधानसभा के किसी सदन के उस सदस्य को अयोग्य भी ठहराया जा सकता है। आपको याद होगा करीब एक दशक पहले लाभ के पद से जुड़े विवाद में सोनिया गांधी को संसद की सदस्यता और नैशनल अडवाइजरी काउंसिल के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उसके साथ साथ हमने शिबू सोरेन और जया बच्चन को भी लाभ के पद से जुड़े मामलों उलझते देखा है। बहस हमेशा ये रही कि आख़िर लाभ के पद की श्रेणी में कौन से पद आएंगे और कौनसे नहीं । और इस प्रकार के दो पदों पर रहने पर किस प्रकार के फायदे और नुकसान हैं। अब तक इसे लेकर स्पष्ट नियम तय नहीं है हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार लाभ के पद को लेकर कुछ नियम तय किए.. लेकिन ये भी अभी तक पूर्ण नहीं है। इस बार केन्द्र सरकार लाभ के पद की परिभाषा को स्पष्ट करने की कोशिश में है और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने लाभ के पदों से संबंधित संयुक्त समिति का गठन किया है।
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